शाइरों और अदीबों की हाज़िरजवाबी, तंज और मजाहिया गुफ़्तगू में भी शाइरी और इल्म की गहरी बातें छिपी होती हैं| ये चीज़ें किसी भाषा के अदब का अनौपचारिक विस्तार ही नहीं होतीं, उस साहित्य और समाज की आत्मा में झाँकने का एक खूबसूरत झरोखा हैं| इस किताब में शामिल लतीफ़ों से लगभग दो सौ सालों के महान शाइरों, संपादको, सियासी शख्शियतों और पत्रकारों का किरदार उभरता है| साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप का बौद्धिक परिदृश्य बनता दिखाई पड़ता है|
अनुराधा शर्मा हिंदी-उर्दू दोनों भाषाओं की कवयित्री, संपादक व अनुवादक हैं। उनकी तीन किताबें मौजूद, मेरे बाद, रक़्स जारी है हिंदी में प्रकाशित और चर्चित हो चुकी हैं। लतीफ़े: साहित्यकारों की हाज़िरजवाबी उनकी चौथी किताब है। वह 2013 से उर्दू भाषा व साहित्य को समर्पित रेख़्ता फाउंडेशन से जुड़ी हुई हैं और उसी के एक अन्य उपक्रम ‘हिन्दवी’ की प्रोजेक्ट हेड और मुख्य संपादक हैं।
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