*राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी* लेखक: डॉ. जितेंद्र मीणा यह पुस्तक उनके लिए है: जो इतिहास को सिर्फ विजेताओं की कथा नहीं मानते जो भारत की सामूहिक स्मृति में आदिवासियों की उपस्थिति दर्ज करना चाहते हैं जो वैकल्पिक और समावेशी विमर्श की तलाश में हैं *”इतिहास में किसी को नज़रअंदाज़ करना, वर्तमान में उसकी हिस्सेदारी छीनने का सबसे महीन तरीका होता है।”* यह पुस्तक उसी ऐतिहासिक अन्याय के विरुद्ध एक सशक्त हस्तक्षेप है- जो सदियों से भारत के आदिवासी समुदायों के साथ होता आया है। उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक फैले इन समुदायों ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ सबसे शुरुआती और सबसे दीर्घकालिक विद्रोह किए, लेकिन मुख्यधारा के इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला जिसके वे अधिकारी थे। ‘राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी’ सिर्फ एक इतिहास पुस्तक नहीं, बल्कि एक वैचारिक यात्रा है जो हमें भारत के भूले-बिसरे जननायकों से मिलवाती है। यह किताब पूछती है- क्यों आदिवासी विद्रोह, बलिदान और संघर्ष हमारी ऐतिहासिक चेतना का हिस्सा नहीं बन सके? लेखक डॉ. जितेंद्र मीणा इतिहास के प्रोफ़ेसर और सामाजिक विमर्शकार हैं।
Professor Ki Diary
यह किताब डायरी, नोट्स और टिप्पणियों की शैली में अपने समय की तफ्तीश करती है। इसमें समाज और राजनीति की बड़ी परिघटनाएं हैं तो इसके बीच बनते हुए एक प्रबुद्ध नौजवान की कहानी भी है। यह आज़मगढ़ के पिछड़े किसान परिवार में पैदा होता है। इलाहाबाद और दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ायी करता है। दशक भर से ज़्यादा दिल्ली के एक कॉलेज में अध्यापन करता है। उसके कंधों पर गरीब परिवार की अपेक्षाओं और अपने सपनों का वज़न है। वह अकेला है। वह असमंजस, असुरक्षा और अनिश्चितता से घिरा हुआ है। वह डरा हुआ है। मगर वह किताबों को नौकरी पाने का जरिया नहीं बनाता, उनसे अपने समाज को समझने का नज़रिया हासिल करता है।
Additional information
Weight
0.200 kg
Dimensions
7.7 × 5.1 × 2 cm
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