गाय दे मौपासां (1850–1893) एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक थे, जिन्हें कहानीकार और नाटककार के रूप में जाना जाता है। वे उन्नीसवीं शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कहानीकारों में से एक माने जाते हैं। उनकी कृतियाँ सरल और स्पष्ट शैली में होती थीं, और वे अपनी कहानियों में मानवीय स्वभाव, सामाजिक असमानताओं और जीवन की कठोरताओं को प्रभावशाली ढंग से चित्रित करते थे।
प्रारंभिक जीवन:
गाय दे मौपासां का जन्म 5 अगस्त 1850 को फ्रांस के नॉर्मंडी क्षेत्र के एक छोटे से गाँव फेके में हुआ था। उनका बचपन संघर्षों में बीता, और उन्होंने पेरिस में अध्ययन किया। उनका जीवन व्यक्तिगत और भावनात्मक संघर्षों से भरा हुआ था, और वे युवावस्था में ही मानसिक समस्याओं का सामना करने लगे थे।
साहित्यिक यात्रा:
मौपासां ने अपनी साहित्यिक यात्रा पत्रकारिता से शुरू की थी और बाद में कहानी लेखन में भी सफलता प्राप्त की। उनके साहित्य का मुख्य विषय मानव जीवन की निराशाएँ, सामाजिक विषमताएँ, और प्रकृति के प्रति मनुष्य का संबंध था। उनका लेखन रियलिज़्म और नैतिकता की आलोचना का प्रतीक था, जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज के विघटन के बारे में लिखा।
प्रमुख रचनाएँ:
- बेल-आम (Boule de Suif) – यह मौपासां की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण कहानी है, जो 1879 में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी फ्रांस की एक वेश्ये महिला बेल-आम की यात्रा के दौरान की घटनाओं को चित्रित करती है और समाज के उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच के असमानताओं को उजागर करती है।
- द हंप (Le Horla) – यह कहानी मानसिक विकार और परा-यथार्थिक घटनाओं का सम्मिलन करती है। यह एक प्रकार की हॉरर और साइकोलॉजिकल थ्रिलर है।
- मपेटे (Mademoiselle Fifi) – यह कहानी फ्रांसीसी समाज और जर्मन आक्रमण के बाद के हालातों पर आधारित है, जिसमें एक महिला द्वारा दिखाए गए साहस और संघर्ष को चित्रित किया गया है।
- पियरे और जीन (Pierre et Jean) – यह उपन्यास पारिवारिक संबंधों और निष्ठा का विश्लेषण करता है।
लेखन शैली:
मौपासां की लेखन शैली सीधी और स्पष्ट थी, और वे अपनी कहानियों में जटिल मनोवैज्ञानिक स्थितियों, नैतिक उलझनों, और सामाजिक आलोचना को अत्यंत प्रभावशाली तरीके से व्यक्त करते थे। उनका लेखन रियलिज़्म का प्रतीक था, जिसमें उन्होंने समाज और उसके काले पहलुओं को बेधड़क तरीके से दिखाया।
निधन और विरासत:
गाय दे मौपासां का निधन 6 जुलाई 1893 को हुआ, और वे केवल 43 वर्ष के थे। उनके साहित्य का प्रभाव विश्वभर के साहित्यकारों पर पड़ा। उनकी कहानियाँ मानवीय भावनाओं, सामाजिक असमानताओं और जीवन के यथार्थ का बेबाक चित्रण करती हैं। आज भी उनकी रचनाएँ विश्व साहित्य में प्रमुख मानी जाती हैं और उनकी लेखनी को एक साहित्यिक धरोहर के रूप में सम्मानित किया जाता है।
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