मनोहर कहानियां कत्ल और फ़रेब की सत्य कथाएं क़ानून अंधा हो तो जुर्म नाचता है और इंसाफ़ रोता है। कोई अपनी ही मौत की स्क्रिप्ट लिख रहा है- बेख़ौफ़, बेपरवाह । कैंसर अस्पताल से दवा की जगह मौत बेची जा रही । दौलत के लिए एक अफ़सर बहू ससुर का क़त्ल करती है। डिजिटल अरेस्ट के नाम पर चल रही है ब्लैकमेलिंग की संगठित दुनिया । इश्क के नाम पर हो रहा है छल, और रिश्ते हवस की आग में जल रहे हैं। ये सिर्फ कहानियां नहीं, हमारे आस-पास की सच्चाइयां हैं, जो कभी भी आपके दरवाज़े पर दस्तक दे सकती हैं। ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका कई पीढ़ियों के लिए मनोरंजन, ज्ञानवर्धन और जागरूकता का स्रोत रही है, अब नयी पीढ़ी की बारी है। हर जुर्म के पीछे एक साज़िश होती है और इंसाफ़ की धीमी मगर सधी हुई आहट भी ।
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